सीमा पुरकायस्थ रोय
काश,जिंदगी सचमुच किताब होती
पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा?
क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा?
कब थोड़ी खुशी मिलेगी, कब दिल रोयेगा?
छोटी सी है ज़िन्दगी
जो लौट के नहीं आने वाले
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
फाड़ सकता मैं उन लम्हों को
जिन्होने मुझे रुलाया है
जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने मुझे हँसाया है...
खोया और कितना पाया है?
हिसाब तो लगा पाता कितना
कल किसने देखा है
अपने आज में खुश हो
काश जिदंगी सचमुच किताब होती,
वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता..
टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता
कुछ पल के लिये मैं भी मुस्कुराता,
काश, जिदंगी सचमुच किताब होती।
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Seema Purkayastha Roy
is a writer and social worker
and she lives in Guwahati
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