रवि कुमार गहतराज
वक्त कुछ ऐसे बीता था,
हर कोई मर मर कर जीता था l
बंद पिंजरे के पंछी सा,
बेबस था , लाचार था l
घड़ी की सुई को घूमते हुए,
कैलेंडर में तारीख बदलते देख रहा था l
हर कोई इस मुश्किल हालात के सामने
खुद ही घुटने टेक रहा था l
कलाकारों की इसके सामने
कलाकारी भी काम न आई l
सांसो की जिंदगी के साथ
वफादारी भी काम न आई l
कौन राजा ? कौन भिखारी ?
यह सब को ही चुन रहा था l
रास्तों से, गलियों से ,
मौत अपना शिकार ढूंढ रहा था l
चेहरे को ढकने का एक
ऐसा अनोखा पल आया l
साथ निभाने के लिए दूरियां जरूरी है,
वक्त ऐसा अनोखा हल लाया l
इसी बीच कुछ जांबाजों ने
सब को बचाने की ठान ली l
मौत ने भी इनके सामने
बड़ी ही मुश्किल से हार मान ली l
कितनों के अरमान पानी में डूब गए,
कितनों के सपनों को आग ने जलाया l
गांव लौटने के राह पर,
कितनों पर डंडे बरसे l
मातृभूमि के सम्मान के खातिर
सड़कों पर न जाने कितनों
ने अपना लहू बहाया ll
मुश्किल वक्त था,गुजर गया,
पर हमने कभी झुकना नहीं सीखा l
साथ हम कदम बढ़ाते रहें
क्योंकि हमने कभी रुकना नहीं सीखा
क्योंकि हमने कभी रुकना नहीं सीखा ll
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Poet Ravi Kr. Gahatraj
studied M.Sc. in Electronics,
currently works at CPWD and
lives in Guwahati
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