जीवन मजूमदार
क्लासरूम की भी अपनी एक महक होती है..
क्लासरूम की अपनी एक कहानी होती है..
पहले सोचता था कब निकलू उन चार दीवारों की क़ैद से...
आज फिरसे वही क़ैद होंनेको दिल चाहता है...
स्कूल बैग का बोझ तब ज़्यादा लगता था...
ज़िन्दगी की ज़िम्मेदारियों का बोझ अब ज़्यादा लगता है..
सोचता था ये वहीं यूनिफार्म हर रोज़ क्यों..?
आज एक ही जीन्स से पूरा हफ़्ता चलता है...
कुछ चीज़ें आज भी नहीं बदली...
बदली नहीं हैं कुछ रिवाज़ें..
बस नाम बदल गया हैं उनका...
एहसास आज भी वहीं है...
डर तब भी लगता था...
डर आज भी लगता हैं...
PTM तब जान लेता था..
रिवीउ मीटिंग आज जान लेती है...
होमवर्क तब भी था...
होमवर्क आज भी है...
बहानेबाज़ी तब भी था..
बहानेबाज़ी आज भी हैं...
चार दीवार तब भी थीं...
चार दीवार आज भी हैं...
एक लास्ट बेंच हुआ करता था वहाँ..
सारे क़िस्से जहाँ बनते थें...
खुलके हँसते थें जीं भरके...
सपनें देख़ा करते थें
ब्लैकबोर्ड और चॉक बदलके
व्हाइटबोर्ड और मार्कर हो गयें...
मार्कशीट की परसेंटेज अब
मंथली टारगेट बन गए...
महसूस होता हैं अब..
वो लास्ट बेंच ही अच्छा था...
तब सांस लेतें थें, पंखों के नीचें...
अब AC में दम घूँटता हैं ।
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Poet Jiban Mazumder
is a Teacher, Photographer and Foodie
and lives in Guwahati
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